प्याज़े का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का वर्णन करें।/ Explain theory of cognitive development of Jon Piyaje.

Ravi Kant Bhakat:
प्रश्न:- प्याज़े का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान् का वर्णन करे।

उत्तर:- प्याज़े का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त :-

        ज्यां प्याज़े द्वारा दिया गया संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त (theory of cognitive development) मानव बुद्धि की प्रकृति एवं उसके विकास से सम्बन्धित एक महान एवं महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। प्याज़े का मानना था,वचपन व्यक्ति के विकास में एक  महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यह सिद्धान्त ज्ञान की प्रकृति के बारे में है और बतलाता है कि मानव कैसे ज्ञान क्रमशः इसका अर्जन करता है, कैसे इसे एक-एक कर जोड़ता है और कैसे इसका उपयोग करता है।

         व्यक्ति वातावरण के तत्वों का प्रत्यक्षीकरण करता है; अर्थात् पहचानता है, प्रतीकों की सहायता से उन्हें समझने की कोशिश करता है तथा संबंधित वस्तु/व्यक्ति के संदर्भ में अमूर्त यानी काल्पनिक चिन्तन करता है।
         उक्त सभी प्रक्रियाओं से मिलकर उसके भीतर एक ज्ञान भण्डार या संज्ञानात्मक संरचना उसके व्यवहार को निर्देशित करती हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति वातावरण में उपस्थित किसी भी प्रकार के उद्दीपकों (Stimuletes) से प्रभावित होकर सीधे प्रतिक्रिया नहीं करता है, पहले वह उन उद्दीपकों को पहचानता है, ग्रहण करता है,  अर्थात संज्ञात्माक संरचना वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों और व्यवहार के बीच मध्यस्थता का कार्य करता हैं।

         ज्याँ प्याजे ने व्यापक स्तर पर संज्ञानात्मक विकास का अध्ययन किया। पियाजे के अनुसार, बालक द्वारा अर्जित ज्ञान के भण्डार का स्वरूप विकास की प्रत्येक अवस्था में बदलता हैं और परिमार्जित होता रहता है।  चूंकि उसके अनुसार, बालक के भीतर संज्ञान का विकास अनेक अवस्थाओ से होकर गुजरता है, इसलिये इसे अवस्था सिद्धान्त भी कहा जाता है।

संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ -

ज्यां पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार अवस्थाओं में विभाजित किया है-

(1) संवेदिक पेशीय अवस्था (Sensory Motor stage) : जन्म के डेढ़ या दो वर्ष तक

(2) पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Pre-operational) : डेढ़ या दो  से सात वर्ष तक

(3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational Stage ) : सात से ग्यारह वर्ष तक

(4) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था या औपचारिक संक्रिया काल (Formal Operational Stage) : ग्यारह से अठारह वर्ष तक।

1. संवेदी क्रियात्मक काल (Sensory Motor Stage) - इस अवस्था का महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्न प्रकार के हैं-

a). इस काल की अवधि जन्म से लेकर डेढ़ या दो वर्ष होता है।
b). इस अवस्था में बच्चा रंगों की पहचान नहीं कर पाता।
c). हिलते डुलते वस्तुओं के प्रति आकर्षित होता है।
d).  कुछ प्रत्यक्ष क्रिया जैसे अंगूठा चूसना, किसी हिलाते हुए वस्तुओं को देखना, किसी बस्तुओं को पकड़ने के लिए ज़िद करना।
e). किसी आवाज के प्रति आकर्षित होना तथा गंभीर आवाज से डर कर रोना।
f). घर पर बोले जाने वाले एकाक्षर शब्दों को बोलना।

2. पूर्व संक्रियात्मक काल (Pre Operational Stage ) - इस अवस्था को विद्यालय पूर्व अवस्था तथा प्रतीकों का निरूपण अवस्था माना जाता है।  यह अवस्था गणितीय अधिगम के लिए महत्वपूर्ण है। इस अवस्था का मुख्य विशेषता निम्न प्रकार है-

a). इस काल की अवधि डेढ़ या दो साल से शुरू होकर सात वर्ष तक चलता है।
b). सुने हुए भाषाओं से सेका प्रयोग करता है।
c). प्रारंभिक स्तर में पूछे गये प्रश्नों का पुनरावृत्ति करता है।
d). किसी भी वस्तु को लेकर नया खेल खेलना।
f). नया वस्तुओं को देखकर सोचना एवं कल्पना करना।
g). मापन की अवधारणा का विकास होता है।
h). हस्तकला जैसे खिलौना बनाना तथा खिलौने से खेलना।

3. मूर्त संक्रियात्मक काल ( Concrete Operational Stage) - इस अवस्था की निम्नांकित विशेषता होती है-

a). इसका अवधि लगभग सात साल से ग्यारह साल के बच्चों में देखने को मिलता है।
b). बच्चे अपने क्रिया का प्रदर्शन शुरू करते है।
c). यह बच्चों के मानसिक विकास का महत्वपूर्ण अवस्था है।
d). इस अवस्था में बच्चे प्रारंभिक विद्यालय में अध्ययन करते हैं।
e). यह अवस्था गणितीय अधिगम एवं गणितीय सोच के लिए महत्वपूर्ण है।

4. अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था या औपचारिक संक्रिया काल ( Formal ऑपरेशनल Stage ) इस अवस्था का विशेषता निम्नांकित है -
a). इस अवस्था की अवधि ग्यारह-बराह वर्ष सेलेकर चौदह-पंद्रह वर्ष तक होती है।
b). इस अवस्था के दौरान बच्चा उच्च प्राथमिक कक्षा में होता है।
c). बच्चा प्रतीकों या विचारों का उपयोग करके तर्क करता है।
d). सोचने के लिए भौतिक वस्तुओं की जरूरत महसूस नहीं करते।
e). सोच या संज्ञान का विकास होता है।
f). गणितीय संक्रियाओं जैसे समय एवं दूरी, अनुपात समानुपात, प्रतिशत, ज्यामितीय संक्रिया, मानचित्र आदि का अधिगम करता है।
g). अनुभव एवं संवेदी क्रियाओं के अनुभव को आगे बढ़ता है।

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